इस लेक्चर में अर्ली वैदिक एज पर चर्चा की गई है, जो आर्यनों के भारत में आगमन से शुरू होकर लगभग 1500 बीसी से 500 बीसी तक फैला है। इसे दो हिस्सों में बांटा गया है: अर्ली वैदिक एज (1500 से 1000 बीसी) और लेटर वैदिक एज (1000 से 500 बीसी)। अर्ली वैदिक एज के दौरान ऋग्वेद का संकलन हुआ, जबकि लेटर वैदिक एज में अन्य वेदों और ग्रंथों का निर्माण हुआ। आर्यन संस्कृति की जानकारी वैदिक और ग्रीक ग्रंथों के माध्यम से प्राप्त होती है। आर्यन एक सेमी नोमेडिक जनजाति थे जिनकी समाज पेस्टोरल अर्थव्यवस्था पर आधारित थी। उनके प्रवास का Herkunft स्थान विवादित रहा है, लेकिन प्रमुख थ्योरी यह है कि उन्होंने पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसने की कोशिश की। ऋग्वेद के अनुसार, इनकी बस्तियाँ कुंभा और सिंधु नदियों में स्थित थीं। ऋग्वेद को मानवता के विश्व धरोहर में शामिल किया गया है और यह 1028 हिम्मों का संग्रह है, जिसमें देवताओं के लिए प्रार्थनाएँ शामिल हैं। अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी आर्यन संस्कृति के संदर्भ पाए जाते हैं।