1957 रिपोर्ट में जो राजनीतिक संकट आया, उसका मुख्य कारण था ब्रिटिश इंडिया कंपनी की क्रूर नीतियाँ। कंपनी ने भारतीय रूलर्स के विश्वास को खो दिया था, विशेषकर डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स और सब्सिडियरी एलाइंस के माध्यम से। इससे प्रभावित होकर भारतीय रूलर्स ने सहयोग की उम्मीद में अपने गुस्से को व्यक्त किया। दूसरी ओर, ब्रिटिश कंपनी के भीतर बढ़ती भ्रष्टाचार की स्थिति ने भी स्थिति को और बिगाड़ दिया। आम भारतीयों में बढ़ते असंतोष को देखते हुए, कंपनी ने अपने धार्मिक प्रचार को बढ़ावा दिया, जो स्थानीय लोगों को यह महसूस कराने में सहायक था कि उनके धर्म परिवर्तन की योजना बनाई जा रही थी। इसके अतिरिक्त, कंपनी द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाने और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने के प्रयासों ने भारत के समाज में उथल-पुथल मचा दी। धार्मिक स्थलों पर टैक्स लगाना और हिंदू परंपराओं में बदलाव के प्रयासों ने भी भारतीयों के बीच असंतोष को बढ़ाया। इस स्थिति ने भारतीय समाज के नेताओं को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार, 1957 की रिपोर्ट में सभी इन घटनाओं और असंतोष का समावेश था, जो ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति विद्रोह की शुरुआत का संकेत था।